रुद्राक्ष की उत्पत्ति और उसके वैज्ञानिक महत्त्व
रुद्राक्ष की उत्पत्ति और उसके वैज्ञानिक महत्त्व
रूद्र का अर्थ है स्वयं शिव और अक्ष का अर्थ है आशू , ऐसी मान्यता है कि त्रिपुरासुर राक्षस ने दुनिया को इतना सताया था कि लोग इसकी पीड़ा के कारण भगवान शिव की सरण में चले गए और उस समय भगवान शिव ने हजारों साल की समाधी के बाद अपनी आंखें खोली और उनकी आंखे से आशु गिर गए और कुछ इन आशुओ मानव जाति पर गिरे और उसमे से एक पेड़ उगा, उस पेड़ को रुद्राक्ष कहा जाता है । लोगो ने ऐश भगवान का आशीर्वाद मानकर स्वीकार किया । रुद्राक्ष ऐक मुखी से लेके 21 मुखी तक होते है और प्रत्यक्ष अलग अलग गुण होते हैं।
रुद्राक्ष की उत्पत्ति के बारे मैं ऐसा हुआ था लेकिन इस रुद्राक्ष को कोन पहन सकता है और कोन नहीं.
रुद्राक्ष की भी जाति ,देश,धर्म, लिंग के लोग धारण कर सकते है, लेकिन इसे धारण करने के बाद कोई भी गलत काम नहीं करना चाहिए।
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रुद्राक्ष का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्त्व भी है। रुद्राक्ष विद्युत ऊर्जा को संग्रहीत करता है जो हमारे मस्टिक्स के रसायनोको उत्तेजित करता है और इस परकार शरीर के स्वास्थ्य को लाभ पोहचता है । और मन को खुश और तनाव मुक्त रखता है । रुद्राक्ष धारण करने से समरन सकती बढ़ती है
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